डेयरियों और बड़ी कंपनियों ने दूध के रेट अपने हिसाब से बढ़ा दिए हैं। नाप-तौल विभाग हो या खाद्य विभाग, कोई भी साफ कह रहा है कि इस पर उनका कोई कंट्रोल नहीं है। उनका कहना है कि डेयरी वाले अपने खर्चों के हिसाब से रेट तय करते हैं, और हम इसमें कुछ नहीं कर सकते।
शहर में हर डेयरी का रेट अलग-अलग है। कहीं 80 रुपए लीटर, तो कहीं 90 या सीधे 100 रुपए तक। कोई स्टैंडर्ड रेट नहीं है। अमूल, मदर डेयरी, देवभोग जैसी कंपनियों ने भी अपने दाम बढ़ा दिए हैं, जिससे दुकानों पर भी दूध महंगा मिल रहा है।
और सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि दूध की क्वालिटी की जांच करने वाला कोई नहीं है। महीनों में एक बार खाद्य विभाग की मोबाइल वैन निकलती है, वो भी सिर्फ दिखावे के लिए। वार्डों में कैंप लगाकर दूध की जांच तो कभी होती ही नहीं। लोग खुद भी जागरूक नहीं हैं कि घर पर दूध की मिलावट कैसे चेक करें।
देशभर में कई जगह दूध में यूरिया तक मिलाया जाता है। रायपुर में ऐसा हो रहा है या नहीं, इसकी कोई खबर नहीं है क्योंकि जांच ही नहीं होती। पानी मिलाने की शिकायतें आम हैं, लेकिन उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती।
अब सवाल ये है कि जब चारा और भूसे की कीमत उतनी नहीं बढ़ी है, तो फिर दूध इतना महंगा क्यों हो गया? मक्का और गेहूं का चारा पहले जैसा ही बिक रहा है। कई डेयरी वाले तो सस्ता और घटिया चारा इस्तेमाल करते हैं, जिससे उनकी लागत ज्यादा नहीं आती। फिर भी हर महीने दूध के रेट 10-10 रुपए बढ़ा दिए जाते हैं।
बड़ी कंपनियों की बात करें तो मदर डेयरी 67 से 69 रुपए, देवभोग 57 से 59 और अमूल 57 से 58 रुपए लीटर में दूध बेच रही हैं। पिछले साल तक यही दूध 45 से 50 रुपए में मिल जाता था। अब दुकानदार MRP से ज्यादा दाम वसूल रहे हैं, कहते हैं कि फ्रिज में रखने से बिजली का खर्च बढ़ता है।
लोग भी मजबूरी में ज्यादा पैसे देकर दूध खरीद रहे हैं, क्योंकि घर के पास ही मिल रहा है और रोज-रोज बहस करने का समय किसके पास है?
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?
रिटायर्ड खाद्य कंट्रोलर आरसी गुलाटी मानते हैं कि दूध की कीमत पूरे शहर में एक जैसी हो सकती है, बस ज़रूरत है सभी डेयरी वालों, कंपनियों और प्रशासन को एक साथ लाने की।
कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह ने भी कहा है कि सभी डेयरी संचालकों को बुलाकर एक बैठक की जाएगी और दूध की कीमत एक जैसी रखने की कोशिश होगी। साथ ही कंपनियों के रेट पर भी नजर डाली जाएगी।