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भिलाई स्टील प्लांट का नया कदम: अब स्टील बनाते वक्त कम होगा प्रदूषण, गैस से बनेगा एथेनॉल |
भिलाई । स्टील इंडस्ट्री को अकसर भारी प्रदूषण फैलाने वाला सेक्टर माना जाता है। लेकिन अब इसमें बदलाव आने लगा है। कई देश और कंपनियां ऐसे तरीके ढूंढ रही हैं जिससे स्टील बनाते वक्त कार्बन उत्सर्जन कम हो। यूरोप की एक कंपनी, रुक्की, अभी दुनिया में सबसे कम कार्बन (1.8 से 2.3 टन CO2) छोड़ते हुए 1 टन स्टील बनाती है। भारत में भी इसी दिशा में बड़ा कदम उठाया है भिलाई स्टील प्लांट (BSP) ने। BSP ने अब स्टील बनाते समय निकलने वाली गैस को बेकार जाने देने के बजाय उससे एथेनॉल बनाने का प्लान शुरू कर दिया है। इसके लिए सेल (SAIL) ने श्रीराम कंपनी के साथ पार्टनरशिप की है। ट्रायल शुरू हो चुका है और जल्द ही हर 25 टन CO2 से 2.5 टन एथेनॉल बनना शुरू हो जाएगा। इससे सिर्फ प्रदूषण नहीं घटेगा, बल्कि एथेनॉल बेचने से कंपनी की कमाई भी बढ़ेगी। और जब कमाई बढ़ेगी, तो कंपनी अपने स्टील की कीमत भी थोड़ा कम रख सकेगी। अब बात करते हैं BSP के उन तीन बड़े कदमों की जो इसे और ज्यादा पर्यावरण-फ्रेंडली बना रहे हैं। BSP अब अपनी प्लांट में बनने वाली गैस को थर्मल पॉवर प्लांट में भेजेगा। इससे वहां कोयले की जरूरत कम होगी और बिजली बनाने में कार्बन कम निकलेगा। अनुमान है कि इससे हर साल करीब 2.30 लाख टन CO2 उत्सर्जन कम होगा। दूसरा बड़ा कदम ये है कि फर्नेस में कोक, आयरन ओर और चूना पत्थर को गलाने के लिए जो तापमान चाहिए, उसे अब वहीं पर बनी गैस से बनाएंगे। मतलब बाहर से अलग से ईंधन लाने की जरूरत नहीं होगी। तीसरी खास बात ये है कि अब प्लांट की रोशनी, पंखे, AC जैसी जरूरतों के लिए बिजली सोलर से ली जाएगी। सेल करीब 70 मेगावॉट का सोलर प्लांट लगा रहा है। माना जा रहा है कि सिर्फ 1 मेगावॉट का सोलर प्लांट भी हर साल 980 टन CO2 कम कर सकता है यानि अब स्टील बनाने का काम सिर्फ मुनाफे का नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद बन रहा है। भिलाई स्टील प्लांट जैसी पहलें दिखाती हैं कि तकनीक और सोच सही हो, तो बड़ा बदलाव मुमकिन है।